नन्हें हाथों से, मेरे गालों पर
वो प्यार करता है
मेरे पास है वो, पाकर मुझे
उसे सुकुं होता है
बचपन, जो उसे फिर से नहीं मिलना है
बचपन, जिसे उसे मस्त होकर जीना है
बचपन, में उसे तन्हा कभी ना रहना है
बचपन, जो खिलौनों के बीच बीतना है
बचपन, जिसे परवाह नहीं किसी की कभी
फिर भी उसे, हर पल मुझे, ढूंढ़ना है
पाकर, मुझे उसे सुकून होता है
क्यूं, ये स्वाभिमान, अभिमान बन जाता है
साथ रहते है, और उन्हें दूर कर जाता है
क्यूं नहीं सोचते, करते है वो मन की अपने
उनके कामों से मेरा बचपन छीन जाता है
तल्ख अंदाज़ में बड़ों के, गुजर गए है महीनों,
कई सालो बचपन के उसके
मैं कहीं और, वो बहुत दूर रहता है
पाकर उसे, मुझे उसे सुकून होता है
देव