वक़्त कैसे गुजर गया
कुछ पता ना चला
जो जानते भी ना
कभी थे एक दूसरे को
एक दिन मिले कॉलेज
की सीढ़ियों पर
चलने लगे बेपरवाह से
कभी सीधे कभी बेढंग से राहों पर
कभी रास्ता मिल गया
कभी रास्ता बनाते गए
वक़्त कैसे गुजर गया
कुछ पता ना चला
पर एक डोर ने बांधे रखा
साथ ना छूटने दिया
लाख रिश्ते बन गए
पर यारी को ना मिटने दिया
बातों में रखी लाख गालियां
दिल में बस था वहीं बसा
आवाज जब अाई एक जरा
निंदे भुला, हर एक चला
वक़्त कैसे गुजर गया
कुछ पता ना चला
देव