स्याह अंधेरा ही मिलेगा, गर, आंख खोलेगी कभी…

बेदर्द है तू, और तेरा इश्क़
ये तू भी जानती है, और जहां भी
मासूम का क्या है गुनाह
क्यू मिल रही उनको सजा

कमबख्त इश्क़ है, जब से लगा
जो था रोशन, चिराग घर का बुझा
अपनों के कलेजे पर रख के पैर
दो कदम बड़ा, बड़ता गया

जवानी है, कुछ पल की यहां
फिर गुम ये हवस हो जाएगी
अपनों की सांस अपनों की आस
फिर काम तेरे आएगी

ना बुझा, लौ, जलाई थी कभी
खून देकर तूने कभी
स्याह अंधेरा ही मिलेगा
गर, आंख खोलेगी कभी

देव

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