मेरे इश्क़ को, आवारगी कहते है।

वो भी हद करते है,
मेरे इश्क़ को,
आवारगी कहते है।
और देखने की उन्हें,
जुर्रत क्या कर ली।
अपनी तारीफ को भी
मेरी बेहूदगी कहते है।

सब्र है मुझमें,
अभी बाकी काफ़ी।
हौसले की है अभी
बारात बाकी।।
मैं रेत पे लिखा,
नाम नहीं हूं,
लहरों से मिट जाऊं
दरियां हूं, जहां भी बहता हूं
बसा देता हूं आशियां
या हाशिया बना देता हूं

देख, मेरे इश्क़ को मेरी,
कमजोरी ना बना।
मुझे मिल ना सही,
पर मेरी खिल्ली ना उड़ा।
मैं अब वो नहीं ,
जो हुआ करता था।
इश्क़ के नाम पर
जो जान दिया करता था।

देव

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