अब वक़्त है स्त्री बनने का

क्यूं बदलू नाम मेरा
क्या नहीं है कोई पहचान मेरी
क्यूं समाज ने ये नियम बनाए है
क्यूं स्त्री पर ये, कायदे लगाए है

क्या बदला था नाम, लक्ष्मी ने भी
या दुर्गा, पार्वती, सती ने, शिव लगाया था
क्या सीता का भी, कोई उपनाम बनाया था
क्या कृष्ण ने रुक्मणि को जात का भेद बताया था
फिर क्यूं, मेरा नाम, शादी के बाद
बदला जाता है
फिर क्यूं पति, नाम पर मेरे अपना हक जताता है

फिर क्यूं मेरे पांवों में बेडिया डाली जाती है
फिर क्यूं, चौखट के भीतर,
रहने की सलाह दी जाती है
क्या होता गर काली बाहर नहीं आती
क्या होता गर कैकई दशरथ के संग
युद्ध में ना जाती
क्या होता गर दूध की गगार ले
वृंदावन नहीं जाती
क्या होता गर भैरवी फरसा नहीं उठाती

क्यूं पड़ते है हम ग्रंथ हमारे
गर उनको समझ नहीं सकते
स्त्री थी मर्द की अर्धांगिनी
गर लिखा हुआ नहीं पड़ सकते

जागो, उठो, बड़ों आगे
अब वक़्त है बदलने का
बहुत रह लिया बेड़ियां पहने
अब वक़्त है स्त्री बनने का
अब वक़्त है स्त्री बनने का

देव

One thought on “अब वक़्त है स्त्री बनने का

  1. स्त्री स्त्री ही है
    नामो में क्या रखा है।
    कभी पुत्री
    मेरी कहि तेरी
    नाम मे क्या रखा है
    मेरी तरह तू
    एक ही है।
    में पुत्र हूं
    किसीका
    हर जगह
    नाम ही
    बदलता है।
    कभी जीजा
    कभी साला
    यही समानता
    है।
    नाम बदल तेरा
    तुझे विशेष बनाते है
    दादी तक बनती है तू
    तेरा ही गुण गाते है

Leave a Reply