अकेले नींव में बैठे अब नहीं रोएंगे

अब कोई नींव की बाते नहीं करता है
अब कोई, छिपा बलिदान नहीं देता है
सबको, बनना है, कटे कंचो से
रोशनी फैलता, वो लटकता झालर
या मीनार के शीश पर बना
आलीशान शीश महल

अब, सब बुलंदी छूना चाहते है
ऊपर पहुंचने की जिद में
अपनों को ही कुचलना जानते है
सिर में क्यूं झुकाऊं, ये गर्व से नहीं
अहंकार से कहते है
इतने बड़े हो गए कि, अपने मां बाप को भी
असिस्टेंट से पूछ, अपॉइंटमेंट देते है

चलो, अच्छा है, सीख लिया उन्होंने
ऐसे जीना
अब कल, अपनी औलाद को
दोष तो ना देंगे
खुद चार कदम आगे बढ गए
उनके मंजिल पर पहुंचने पर
अकेले नींव में बैठे अब नहीं रोएंगे

देव

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