अहम ब्रह्मस्मी

जला मशाल जरा, सुकून की
विश्वास तू कर जरा
जरा बैठ तू चैन से
दे दुनिया को कुछ पल भुला
मैं तेरी रूह ही तो हूं
तू है अंश मेरा ही
रहता हूं मैं तो हर वक़्त साथ तेरे
ना तू भटक यहां वहां

माना, है पड़े तूने ग्रंथ हजार यहां
हजार यतन है लिखे,
पाने के मुझको बार बार
कोशिश की गई है
मुझे पाने की लाख बार
हर किसी को है मेरी यहां तलाश
पर, में नहीं पत्थर
या किसी मूरत में हूं समाया
तूने बनाया मुझको
नाकी, मैंने तुझे बनाया
खुद ही भुला बैठा है
अपने किए जतन
अब ढूंढता फिरता है मुझको
करके ढोंग प्रपंच

मैं ही तू हूं, तू ही मैं हूं
तुझमें मैं हूं समाया, मुझमें है तू
फिर अलग क्या है
क्यूं ढूंढ़ता है मुझको पगले
कभी मंदिर, कभी मस्जिद
कभी गुरुद्वारे में
बंद कर नजरें जरा अपनी
मैं समाया हूं, तेरे मन के गलियारे में

देव

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