बला की खूसूरती, नजर आईं है
जैसे हूर खुद, जमीं पर उतर आई है
माथे पर बिंदी, हाथो में कंगन
और नीली सारी में, तुम पर खूब भाई है
माना महीना सावन का, गुज़र गया यू ही
तेरे लहरिए ने, कितनो पर बिजलियां गिराई है
बलखाई कमर को कस, कंधे से लटकते पल्लू ने
रास्ते में मजनुओं की, कतार लगाई है
घर से निकलना, जरा सम्हाल के हसीना
आशिकों की आज, दीवाली अाई है
देव