बैठते तो आज भी सब है
मगर मोहल्ले के चबूतरे पर नहीं
ना गांव के चौपालों में
ना राम राम ना नमस्ते होती है
अनजान चेहरों से
अब कहा पानी के लिए पूछा जाता है
गली से निकलते राहगीरों से
अब कौन पड़ोसी की रसोई में जाता है
कौन मटकी से पानी पिलाता है
अब नहीं होती है होली
मोहल्ले के चौक में
अब नहीं पूछता चाय कोई
घर की मुंडेर से
अब कहा है पत्थर में लिपटे हुए
मोहब्बत के किस्से
अब कहा जाती है चमेली
छत पर सुखाने कपड़े
अब कहा ताकते है आशिक़
पतंग उड़ाने के बहाने
अब कहा करते है नज़रे चार
बहन की सहेली से, उसे घर छोड़ने के बहाने
अब वक़्त बदल चुका है
पहचाने चेहरों में अनजान है हम
काफी का मग बड़ा हो गया
और दिलो में प्यार है कम
अब रेस्त्रां में भीड़ भरी है
पर अकेले है हम
अब मोबाइल की स्क्रीन में
हर वक़्त खोए है हम
अब कहा मोहब्बत, है दिलो में
कहा जज्बात रह गाए है
अब डिस्क में होता है याराना
सुबह तक अनजान हो जाते है सब
वक़्त सच में बदल चुका है
ना तुम तुम रहे हो
ना मैं, मैं रहा हूं
चलो, फिर से वही पुराना वक़्त बुलाते है
चलो, किसी दिन मेरे मोहल्ले में
चाय की चुस्की लगाते है
कुछ दिलो में फिर से वही
मोहब्बत जगाते है
देव