क्यूं तू छोटी छोटी बातों पर रूठती है
क्यूं हसीं के पल, पल में भूलती है
क्यूं तन्हा बैठ, गमों से खेलती है
क्यूं इश्क़ के नाम से दूर रहती है
छोटी से है जिंदगी, जाने कब फिसल जाए।
बटोर लो, जो खुशी मिले, कब बिछड़ जाएं।।
वक़्त का पता नहीं, कब निकल जाए।
तन्हा मत गुज़र इसे, कहीं कम ना पड़ जाए।।
यार मिले चार भले, पर खास है ये सारे।
तेरे बिना कहा होगा, पूरे चक्रव्यूह हमारे।।
कृष्ण मनती है, कृष्ण समझ तो जरा।
सुदामा जब पधारे, ना शिकवा था जरा।
दोस्ती में कर ले लड़ाई, दस बार तू दिन में।
रखेगी शिकवे गर मन में, करेगी दोस्ती किससे।।
गिला गर कोई है तो, कुछ गालियां देदे।
पर ना बना कबर, ना फूल तू छड़ा।।
गमों की सोच तू कम कर,
ना बर्बाद खुद को कर।
खुशी छोटी भले ही हो,
बड़ा जश्न तू मना।
देव