धरती के गोद, नहीं अब है खुलती

पूछा किसी ने, भाई
रावण गर आज, पत्नी को लेजाएगा
तो क्या आज भी रावण, शैतान कहलाएगा।।
क्या आज भी, राम सीता को बचाने
सात समंदर पार जाएगा।
क्या आज फिर से सीता को
आग के शोलो से गुजारा जाएगा।।

अरे, अब कहा सतयुग के रावण होते है
रावण जैसे विद्वान, कहा शैतान होते है

वो रावण, स्वयं राम से कम ना था
परस्त्री को उसने जरा भी छुआ ना था

राम के इशारों पर लक्ष्मण न स्त्री पर वार किया
स्त्री को बचाने में, स्त्री का तिरस्कार किया

रावण कहा मिलते है कलयुग में
कहा, स्त्री की सुनते है, हठयुग में
तिरस्कार का पुरस्कार तैयार है अब
सीखेंगे रावण से सम्मान ये कब

अब आबरू छीनी जाती है पल में यूं ही
राम देखते रहते है, चीरहरण यू ही
लक्ष्मण की तलवार, धार है भूली
धरती के गोद, नहीं अब है खुलती

देव

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