कुछ लम्हे जिंदगी के,
यूं हो गए यादगार।
तेरे पहलू में बीता दिन,
आंगन में निकली रात।।
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कहां रहती है आजकल,
मोहब्बत है क्या किसी को पता।
ढूंढते फिरते है दर बदर,
लिए हाथो में दिल, जुनून मोहब्बत का।।
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रुखसत किया उसने मुझे,
बड़े इत्मीनान से।।
चाहती थी शायद रोकना वो,
हम चल दिए, बिन समझे बात को।।
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फ़िक्र है उसको मेरी,
तभी पुकारा उसने सुन आह मेरी।
मैं ही कमबख्त इश्क को उसके,
याराना समझता रहा।।
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उसके हर लब्ज़ पर निसार दू,
जान मैं अपनी।।
हर लब्ज़ से पहले, जरा सुनना,
वो बोले तो सही।।
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तेरी बातों ही का तो असर है ऐसा
जिंदगी मुझसे इतनी जो, मोहब्बत करती है
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ये तो नजरिया है, कुछ देखने का यू,
कुछ फूलों में कांटे, कुछ को कांटो में फूल दिखते है
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जिस चेहरे के तसव्वुर पर,
जिंदगी लूटा बैठे थे हम।
छिपाए रखे था काफिर को,
वो चेहरा, मुखौटा निकला।।
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हम तो कब से, लगा बैठे है दिल अपना।
उसने, दोस्त है बोलकर, ख्वाहिशें खारिज़ कर दी।।
देव