सिंदूर

कौन कहता है, सिंदूर, निशान है सुहाग का,
मां का आशीर्वाद है, तेरे माथे की, शोभा बढ़ाता,
नहीं चाहिए नाम, किसी का, श्रृंगार के लिए,
तू खुद ही सम्पूर्ण है, परिपूर्ण है,
क्यूं चाहिए कोई, बस नाम के लिए।।

देव

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