पीना तो बस बहाना है,
तेरी आंखो में छिपा, एक अफसाना है,
थोड़ा कल, जो तू छिपाना चाहती है,
चाह कर भी, नहीं तू बताना चाहती है,
ठेस, तो दिल को लगी थी, कभी तेरे,
नहीं, किसी और को, बता, तू रुकना चाहती है,
और ये भी बयां होता है, तेरी आंखो से,
तू निकल गई है, काफी आगे, यूं अफसानों से,
कुछ नए फसाने बनाना चाहती है,
पर, अब भी आगे बढ़ने में, घबराती है,
इश्क़ तू करना चाहती है,
बस, तू ही तो इश्क़ करना जानती है,
करती भी है मोहब्बत तू अभी,
पर अपनी मोहब्बत कहां, पहचानती है,
तेरी आंखे तो बहुत कुछ कह गई मुझको,
जो छिपाया है तुझे, बयां कर गई मुझको,
जानती है तू मुझे, नहीं शर्मिंदा मैं कर सकता तुझे,
ख़तम करता हूं किस्सा, तेरी नज़रों ने जो कहा।
देव