कुछ तो है, वो यूं ही नहीं, चुप है,
उनकी खामोशी भी, उनके इरादों बयां करती है,
मोहब्बत उन्हें भी है, उनके चेहरे से,
ये बात पता चलती है,
कभी चुप रहना, कभी बेतरतीब बोलना,
कभी मुस्कुरा कर, बस एकटक देखना,
मेरे आने से, उनकी नज़रों का यूं झुक जाना,
धीमी आवाज में, कैसे हो, पूछा जाना,
देखता हूं, मैं भी, नज़रे चुरा जमाने से,
कैसे बोल दूं उनको, इश्क़ करता हूं, उनके हर फसाने से,
पर, मुझे ख़ुद को, मालूम नहीं मंजर मेरा,
कैसे दे दूं, एक और गम, मोहब्बत का,
इसीलिए, जान कर, चुप रहता हूं,
मुझे भी इश्क़ है उनसे, बयां नहीं करता हूं।
देव