सशक्त हो, पहाड़ सी

बिखेरने की लाख कोशिशों का,
सामना करती रही तू
सम्मान बचा अपना,
डट कर खड़ी रही तू,

हर कदम पर, मुश्किलें बिछा,
अरमान तेरे, चीरता गया,
वो जो साथ लेकर, चला था कभी,
कदमों से कुचलता रहा,

कब तक सहती, बर्दास्त करती,
खंजरों से शब्दबाण को,
प्रतिकार करने की ठान ली,
बन चंडी तू, बड़ी संहार को,

मिटा के पाप का धुंआ,
बनाया प्यार का जहां,
निडर निसंकोच तू चली,
सशक्त हो, पहाड़ सी।।

देव

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