ना इजहार ए इश्क ही होता है

कर्ज और फर्ज के बीच में,
ये दिल का मर्ज ही तो है,
जो जिंदा रखता है,
बस, इक अदद देख लेते है सूरत तुम्हारी,
दिन और खूबसूरत गुजरता है।।

कहां मिलती है, तसल्ली
बस तेरी तस्वीर देखने से,
तेरे दामन ले रख कर सिर,
मिले कुछ पल तो, बिताने के,

ख्यालों पर भी तो पहरा,
लगा रखा है जमाने में,
ना खुल कर बोल पाते है,
ना इजहार ए इश्क ही होता है

देव

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