हां, करता हूं, मैं जीने की बात करता हूं…

एक यार ने पूछा आज,
क्या तुम थकते नहीं हो,
हर वक़्त, कुछ ना कुछ ,
करते रहते हो,
बस, लगे रहते हो,

क्या कहूं, बात तो सही है,
पर अपनों के लिए थकना कैसा,
और खुद को खुशी जिसमें मिले,
उस वक़्त के लिए, रुकना कैसा,

वैसे ही, जिंदगी बहुत कम है,
और मिले भी हमे, नहीं गम कम है,
हर पल को जीने का हुनर ढूंढता हूं,
हर बात में खुशी, ढूंढता हूं,

यूं ही नहीं, मैं लिखता हूं,
कुछ है मेरे जैसे, जिन्हे झकझोरता हूं,
कुछ होंठो पर, मुस्कान बिखेरता हूं, कविता में तारीफ उनके, हुस्न की करता हूं,

वैसे ही, कम है, खुश होने वाले
और बहुत कम हैं, बाटने वाले,
लोग कहते है, मैं गुनाह करता हूं,
हां, करता हूं, मैं जीने की बात करता हूं।।

देव

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