चिताओ ने रखा था जकड़े,
सोच को मेरी, हकीकत से,
कहीं से, आ रही थी आवाज,
मेरे कानो में, जीने की,
रोक भी तो क्या रोकेंगे,
ये शोले, बीती रातों के,
सूरज नया खिल रहा है,
कौन रोकेगा, अंगारों से।।
देव
चिताओ ने रखा था जकड़े,
सोच को मेरी, हकीकत से,
कहीं से, आ रही थी आवाज,
मेरे कानो में, जीने की,
रोक भी तो क्या रोकेंगे,
ये शोले, बीती रातों के,
सूरज नया खिल रहा है,
कौन रोकेगा, अंगारों से।।
देव