देव बाबू, हां यही नाम दे दिया है

देव बाबू, हां यही नाम दे दिया है,
और कुछ अंजाम भी, ऐसा ही कर दिया है,
जो हमे चाहते है, उन्हें हम चाह नहीं सकते,
और जिन्हे चाहते है, वो इसी बात में मागशूल है,
की हम उन्हें क्यूं नहीं चाहते,
जोभाने चाहते है या
हम उन्हें चाहते है तो क्यूं चाहते है,

वही देखो, कुछ यार ऐसे है
जो कभी हमे खास मानते थे,
और अब हमारे पहुंचने के पहले ही,
तारीफों के पुल, बांध देते है,
और जो कभी, हमारी महफ़िल
में आने को उतावले होते थे,
अब, महफिलें हजार करते है,
जब पूछते है, तो अनजान बनते है

हमने कब कहा था उनसे,
कि हम उन्हें प्यार करते है,
बस, दोस्त ही तो थे,
और वो दोस्ती में भी आस कर बैठे,

चलो छोड़ो, आदत हैं उनकी,
मैं क्या, सबके साथ है वो ये करते,
तभी तो जिंदगी की शाम में,
तन्हा वही रहते।।

देव

Leave a Reply