बसा लो एक नई बस्ती

यह दिल, एक बार नहीं, कई बार टूटा है,
इन्हीं हाथों से दामन, कई बार छूटा है,
जो करते थे वादा, सात जन्म साथ निभाने का,
उन्होंने ही अपने हाथों से, पीठ में खंजर घोपा है,

बन जाओ तुम भी जिद्दी,
ना समझो इसे हर अपनी,
खोने के रोने में, ना बर्बाद करो वक़्त
मंजिले नई बना को, रास्तों से तुम अनजान नहीं,

जैसे पुरानी डाली पर, नई कोपल है खिलती,
तोड़ कर सख्त दीवारें, कोमल सी, बाहर निकलती,
नया जीवन, नई रोशनी, है हर तरफ से फूटती,
जिंदगी भी, ना रोको तुम, बसा लो एक नई बस्ती।।

देव

Leave a Reply