तुम यही तो थी, हरदम,
मेरे सामने, देखा तुम्हे,
बस, नजर नहीं पड़ी,
और हां, दिल की आवाज,
याद है, सुनाई तो दी थी,
और घंटी भी बजी थी,
पहली मुलाक़ात में,
लेकिन, मेरे हालात,
और तुम्हारी आकांक्षाओं,
में मिलाप नहीं था,
वक़्त मेरे पास भी नहीं था,
और शायद, तुम्हे
इंतेज़ार का वक़्त नहीं था,
शायद, बस इसी शायद,
ने मुझे रोका रखा,
देखता तो रहा,
पर बड़ ना सका,
तुम पास थी, और
मैं हर एक में,
तुम्हे खोजता रहा,
पर, अब शायद नहीं,
यकीं है, वो तुम ही हो,
तुम है वो हो,
जो मुझे, मुझसे मिला,
मेरे जज्बातों को समझ,
अपने प्यार से,
मेरे अरमानों को,
सजा सकती है,
मेरी मोहब्बत को,
अपने इश्क़ से,
मिला सकती है,
देव