शायद, ये मेरा शहर नहीं है

शायद, ये मेरा शहर नहीं है,
शायद, ये मेरा शहर नहीं है,
यहां तो प्यार को, ब्रांड्स की
तराजू में तोला जाता है,
जो ज्यादा महंगा गिफ्ट देता है,
वही, शायद क्या प्यार दे पाता है,
मेरे शहर में तो वक़्त में मायने थे,
घंटो बागीचे में बैठ,
बस एक दूसरे के देखने,
के भी बहुत मायने थे,
मोहब्बत बस आंखो से
बयां हो जाती थी,
आई लव यू, बोलने की,
जरूरत भी नहीं आती थी,

इश्क़ जरा छिप कर होता था,
बुरी नजर ना लगे प्यार को,
चिठ्ठी में भी, काला तिल होता है,
बड़े इत्मीनान से, लव लेटर्स
लिखे जाते थे,
गली य मोहल्ले में, कोई तो
डाकिया का रोल करता था,
एक टाफी के लालच में,
हाल ए दिल लिखकर,
पहुंचाए जाते थे,

माना, पाबंदियां थी प्यार पर,
मगर, तभी तो मजे आते थे,
लोगो से नज़रे बचा,
चेहरे को छिपा नकाब से,
शहर से दूर खोपचे ढूंढे जाते थे,

अब इन शहरों में कहा इश्क़ बचा है,
यह मोहब्बत से पहले,
रूप देखा जाता है,
बैंक बैलेंस चेक किया जाता है,
रिलेशन पहले बनती है,
लव यूं बाद में बोला जाता है,

देव

Leave a Reply