अब ना सुनने की, आदत भी डाल लो..

क्या मैं, बस एक वस्तु हूं,
जो चाहे, जैसे चाहे, यूज करें,
क्या मेरे ख़्वाब, मेरे अरमान नहीं है,
जो चाहे, अपने हिसाब से प्यार करे,

क्या मेरा कोई मान नहीं,
क्या मेरा कोई आत्म सम्मान नहीं,
क्यूं मैं किसी को नहीं चाह सकती,
क्यूं मैं, अपना वर नहीं पा सकती,

युगों से, धकेला है मुझे समाज ने,
कभी दोस्ती, कभी परंपरा के नाम पे,
माना अब जमाना, बदल गया है,
पर अब भी कायम, वही परंपरा है,
बस, जरा सा हंस दू, तो क्या मान लेते है,
मोहब्बत का बस, पैग़ाम छाप देते है,

अब नहीं चलेगा, मुझ पर तुम्हारा जादू,
अब हो गया है, अश्व ये बेकाबू,
अब वक़्त आ गया है, मुझे पहचान लो,
अब ना सुनने की, आदत भी डाल लो।।

देव

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