बेफिक्र सी जिंदगी उसकी,
और लम्बा ये सफ़र,
ना वक़्त मिलता है पैमाने का,
ना फिक्र करती है जमाने की,
रुक कर, बस देख लेती है,
हर आने जाने वाले को,
गुजराती है शामे उसकी,
अक्सर झरोखे में घर के,
कभी निकल भी जाती है,
अफसानों का थैला लेकर,
बोलती यूं ही नहीं वो,
किस्से है सुनाने को बहुत।।
देव