इन कांक्रीट के जंगलों, का भविष्य

बस, कुछ दिन पहले ही बतिया रहा था,
इन कांक्रीट के जंगलों, का भविष्य,
पड़ा जा रहा था,
क्या होगा, गर इकोनोमिक क्राइसिस हो गया,
इन जंगलों में, भटकेंगे, बस भूत और हवा,

नहीं पता था, जल्द ही वक़्त आयेगा,
गति का पहिया, पल में थाम जाएगा,
बाहर जो निकले पड़ा था, बढ़ने कभी,
अपने ही घर में, कैद वो हो जाएगा,

कुछ भी तो नहीं, ये भी बस एक बीमारी है,
लेकिन अभी तक की, सब पर भारी है
कुछ है, कुछ बना दी गई है,
मीडिया की भी, कम जिम्मेदारी नहीं है,

और एक अहम, हम इंसान है,
कहा छूट पाएगा,
वायरस ही तो है, इससे हमें
क्या हो जाएगा,
और क्यूं बताए, हो जाएंगे ठीक अपने आप,
ना सोचा पल भर भी, परिवार है तुम्हारे साथ,

बस, यही सब देख कर, फिर सोच रहा हूं,
आखिर, में इस जंगल में क्या कर रहा हूं,
चाहिए तो वहीं, दो रोटी, और सब्जी,
फिर क्यूं, अपनी खुशियां, चौराहे पर, नीलम कर रहा हूं।।

देव

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