उनके सिवा कहीं, नजर नहीं जाती

किताबें भी पेश करी, पड़ने को उनको,
क्या करे, जुबां ए मोहब्बत,
उन्हें समझ नहीं आती।

करते तो है, बात अक्सर हमसे,
मगर इश्क़ की खुशबू नहीं आती,

हम भी, थोड़े से सिरफिरे है आखिर,
उनके सिवा कहीं, नजर नहीं जाती।।

देव

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