अक्सर शाम अपनी, यारो के नाम,कर जाती हूं

गमों का चीर कर सीना,
मैं चल पड़ी थी,
भूल कर, कल अपना,
आगे बढ चड़ी थी,

अब मैं हूं, और बस
परछाई मेरी,
और अक्सर मिल जाती है,
तन्हाई मेरी,

सीखा है कल से मैंने, जो थी
मैं अब ना रही,
मेरे चहरे की हंसी बताती है,
बीती रातें मेरी,

बस मुस्कुराती हूं, बिंदास
सपने सजाती हूं,
खुद से ही ख्वाहिश, और खुद ही,
खुद को तोहफे से जाती हूं,

और कुछ हंसी, कुछ प्यार,
कुछ दिलो को, बेकरार
कर जाती हूं,
अक्सर शाम अपनी, यारो के नाम,
कर जाती हूं।

देव

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