राधा को असमंजस में पाऊ

बैर करू, कि प्रेम करू,
राधा को असमंजस में पाऊ,
कृष्ण चले, मथुरा की ओर,
अब कैसे में समझाऊं,

मैं तो सखी हूं, पर जानती इतना,
विरह की बेला, अब आईं,
कैसे राधा, रहेगी अब जब,
कृष्णा नहीं, देख पाएगी,

अश्रुधारा बह रही झर झर
दिखती राधा, है कितनी बेबस,
एक तरफ प्यार, है रोके उसको,
कृष्णा का रूप, ना दिखता है उसको,

हरी जाने, सब मन की बातें,
चले आए करीब, मंद मंद मुस्काते,
अंगुलियों में ले, अश्रु की बूंदे,
बड़े मधुर से, बचन ये बोले,

राधे! क्यूं बहाती हो अश्रु की धारा,
मैं था भी तुम्हारा, रहूंगा तुम्हारा,
पहला हक तुम्हारा ही आवे,
चाहे कृष्णा कितनी रास राचावे,

मुझमें बसा प्रेम, तुम है तो हो,
मुस्कान मेरी, प्राण तुम ही तो हो,
नाम मेरा अधूरा है तुम बिन,
जिव्हा पर सबके, मुझसे पहले तुम हो,

मैं भी तुम हो, मुझमें तुम हो,
जहा हूं मैं, हर जगह भी तुम हो,
विरह नहीं, ये मिलन हुआ है,
सदियों का ये, प्रेम हुआ है,

राधा, बस तकती रहती है,
असमझी थी, अब समझी है,
दो शरीर है, एक ही मन है,
कृष्णा राधा है, राधा ही कृष्ण है।।

देव

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