मैं हूं आवारा

अब तो आदत सी हो गई है,
टूटने और फिर जुड़ने को,
और ऐसा नहीं, कि तोड़ा हो,
बहुत ने मुझे,
जिसे समझ अपना,
उसी ने खिलौना समझा,
जब तक था काम का रखा,
फिर फेंक दिया,

दिल तो पहले भी टूटा है,
मगर इस बार कुछ यूं टूटा,
वो भी रोती रही, और
बहुत मैं भी रोया,

जख्म अभी हरे है,
ना पूछना हाल मेरा,
ना करना इश्क़ भी मुझे,
मिलेगा दिल ना मेरा,

उसके आहिस्ता आहिस्ता
चलने की जिद में,
ना मैं, मैं रहा, ना
ना उसका बन पाया,

कसूर उसका नहीं,
वक़्त का है सारा,
वो जो है, नहीं रही
आज वो जो थी कभी,

शख्शियत पर मेरी भी
अंगुलिया है हजार उठी,
उसको यकीं है औरों पर,
मुझसे कहीं ज्यादा,

क्या कहूं उसे,
दुआ है, बस खुश वो रहे,
मुझ पे लगा है ठप्पा,
मैं हूं आवारा।।

देव

Leave a Reply