कागज की कश्ती ही तो

कागज की कश्ती ही तो,
बन गई ये जिंदगी,
जरा सी जोर की हवा भी,
डूबने का सबब बन जाती है।

तूफानों में क्या जाऊं,
लेकर हाथ में, लौ दिए की,
या तो बुझ ये जाएगी,
या जला देगी, सब अरमा।

देव

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