आज बस यूं ही आंखे भर आईं,
आज फिर मां की याद आई,
छोटा सा था, जाना पड़ा था उन्हें,
हमारी खुशी के लिए,
याद बहुत आती थी,
पर रो भी नहीं पाता था,
कुछ लम्हे, भीगी आंखों में,
गुसलखाने में बिताता था,
यूं तो सब थे घर में,
मगर मां, मां होती है,
कभी भूल नहीं पाता था,
फिर, कुछ वक़्त, बस मां और मैं थे,
सबसे दूर, मजबूरी में रहते थे,
वो दफ्तर जाती थी, मैं इंतेज़ार करता था,
रात की ड्यूटी में, हॉस्पिटल की,
स्ट्रक्चर पर भी सोता था,
डर तो बहुत लगता था, कि इस पर,
कोई मुर्दा निकाला गया होगा,
मगर, मां आस पास है,
सोच कर मस्त सोता था,
मगर, एक बार फिर से वही दौर शुरू हुआ,
बस शनि की रात से, सोम की सुबह तक,
के वक़्त, मां का दीदार हुआ,
उन्हें भी डर तो लगता था,
मगर जीत जाती थी,
जब भी, डरावना अहसास रात में होता,
अगले दिन हमसे मिलने आ जाती थी,
और, सच में, किसी ना किसी को,
बीमार पाती थी,
पता नहीं, कैसा उनका दिल होता है,
पल में बच्चो की बीमारी का,
अहसास होता है,
वक़्त गुज़र गया काफी,
बड़े हो, सब अपने बच्चो में,
व्यस्त हो गए,
अब वो तन्हा रहती है,
और हम बाहर, वो आज भी,
पल में हमारे हाल जानती है,
और हम, आज भी बेफिक्र,
सोते है, हर रात में,
बस, अब वो हमे याद करती है,
और हम भूल जाते है,
जो नहीं है जरूरी,
उसमे खो जाते है,
अब भी वक़्त है, सम्हलने का,
उसके अहसास को, समझने का,
आज वो मां है तो क्या,
कल हम भी मां, होगे,
इसी दौर से गुजरेंगे,
और जब वो नहीं रहेगी,
थोड़ा पछतावा करेंगे,
बस, उसे याद करेंगे ।।
देव
10 may 2020