मगर जीना कहीं भुला

कुछ कदम बढ़ते है,
फिर रुक जाते है,
ठिठक कर, ठहर जाते है,
मुड़ कर देखने पर,
फिर वही, रास्ते पाते है,
यूं तो बढ़ गए काफी,
मगर, जो छूटना था पहले,
हर कदम पर साथ पाते है,
जैसे, वक़्त बढ़ते हुए भी,
कुछ थमा सा है,
मंजिले सामने ही है,
मगर रुकी सी है,
जैसे, आसमा दिखता तो है,
जमीं से मिलता,
मगर वो छोर नहीं मिलता,
जैसे, जिंदगी तो मिली,
मगर जीना कहीं भुला।।

देव

20 may 2020

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