रे अक्स को कागज पर, उंकेरूं कैसे

तेरे अक्स को कागज पर, उंकेरूं कैसे,
खुदा ने, रंग ही नहीं, वो बनाए,
तेरे हुस्न की तारीफ में क्या मैं लिखूं,
जो लब्ज़ मिले, वही कमतर नजर आए।

तू तो बस यू ही, कह देती है,
देखो, ये तस्वीर, अच्छी नहीं ली तुमने,
तेरी उसी तस्वीर से घायल,
दीवाने हजार नजर आए।

यूं ही नहीं, आते है हम महफ़िल में,
कुछ लब्ज़ सुन ले तेरे, तो कानो को,
सुकून आए, कुछ पल ही सही,
इक बार, दीदार तेरा हो जाए।।

देव

15 may 2020

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