जिंदगी, कुछ आहिस्ता सी हो गई,
वो क्या रूठे, सांसे थम सी गई,
गुजरते हुए लम्हे, भी पूछने लगे,
क्या बात है, घड़ी क्यूं, रुक सी गई है।
अब तो बेजान है, महफ़िल,
कहा सुर ताल है, नगमो में,
ग़ज़ल, को ग्रहण लग गया है,
दर्द ही दर्द, भरा है, नज्मों में।
कदम उनके, पल को, थम जाए,
दो लब्ज़ ही सही, वो कह जाएं,
नखरे से सही, देख ले इक बार,
वीरान चेहरों पर, बहार आ जाए।।
देव
27 may 2020