चांद भी कुछ, उसकी तरह,
लुका छिपी खेल रहा है,
कभी चांदनी से अपनी, मुझे,
नहला रहा है,
कभी, बादलों के पर्दे,
के पीछे छिप, बहला रहा है,
मैं भी, थोड़ा ढीठ हूं,
जब वो सामने आता है,
तो एकटक निहारता हूं,
और जब नहीं दिखता, तो
एक नजर भर देखने की,
दुआ मांगता हूं।।
देव
5 June 2020