किताब के बहाने, हर शाम बैठती है

वो अब फिर से, आंगन के झरोखे में,
किताब के बहाने, हर शाम बैठती है,

जब गुजरता हू, उसकी गली से,
झुकी नजरो से, मुझे तकती है,

नजर मेरी, जब, उस पर, पड़ती है,
पशेमने पर उसके, सलवटें पड़ती है,

शरम और हया से, लाल चेहरे को,
उल्टी किताब से, पल में ढकती है।।

देव

16 june 2020

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