यूं ही तो नहीं, तुम जिंदगी हो

कल मिली थी रास्ते में,
बड़ी बदहवास सी चली जा रही थी,
जैसे कुछ छूट गया हो,
पसीने में तरबटर,
हांफती से, बड़े जा रही थी,
मैंने पूछा, क्या हुआ,
इतनी परेशान सी क्यूं हो,
उसके कहा, मेरी ख्वाहिशें,
मेरे सपनो को लेकर ,
जा रही है, क्या करूं,
बड़ी असमंजस में हूं,
ख्वाहिश को रखूं,
या सपनों को, कुछ
समझ नहीं आ रहा है,
इसी उल्फत में, सब कुछ
छूटता जा रहा है,
मैंने कहा, सपने तो
रूह देखती है,
जो अंतर्मन से आते है,
ख्वाहिशें दिमाग देता है,
जो हर पल बढ़ती जाती है,
बाकी, तुम समझदार हो,

यूं ही तो नहीं, तुम जिंदगी हो।।

देव

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