भारतीय संस्कृति में कभी भी पर्दा प्रथा नहीं थी। बल्कि स्त्री को अर्धांगिनी माना गया है। प्रथम गुरु मां, एक स्त्री होती है। बेटियां देवी के रूप में पूजी जाती है। पत्नी का स्थान, पति के साथ होता है। फिर पर्दा क्यूं।।।
कुछ पेश है।।
बेगैरत कहने वालो, जरा नज़रे घुमा लो,
पर्दा क्यूं मै करू, जब जरूरत है तुम्हारी।
मेरी नज़रे तो झुकी है, उठी पलकें तुम्हारी,
ख्यालातों को क्यूं इतना, उड़ाते हो यहां तहा।
इतनी शर्म है तो, को देती हूं तुमको,
जरा अपनी हया को, पहनाओ शर्म का पर्दा।
सीता, राधा, पार्वती, लक्ष्मी या दुर्गा,
किसी के माथे पर देखा, क्या तुमने पर्दा,
जना स्त्री ने तुमको, करे स्त्री ही पर्दा,
कैसा धर्म है ये, कहा की है मर्यादा।
ये हिन्द है, यहां की संस्कृति यही है,
स्त्री बस स्त्री नहीं, अर्धांगिनी है।।
देव