मैं कितना बदल गया

मैं कितना बदल गया,
मैं फिर से मैं बन गया,

कभी किस्से अभी अफसानों, में बसर था,
हर सफर में नया हमसफ़र था,
हर तारीख, नई क़लम से, लिखी जाती थी,
हर मास, तारीख नई आती थी,
अब सब रुक सा गया,
मैं कितना बदल गया।।

ख्वाबों की लंबी, फेरहिस्त थी कभी,
मंजिलों की लंबी कतारें थी कभी,
सोचों का दरिया, बहा करता था,
हर मौसम का, अलग मजा था,
अब सब थम सा गया,
मैं कितना बदल गया।
मैं फिर से मैं, बन गया।।

देव

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