सावन

वो वक़्त कुछ और था,
हर किसी पर एक सुरूर था,
ना जाने, कहा सब खो गया,
सावन, कब जेठ हो गया।

कहा झूले है पेड़ों पर,
कहा घुंघरुओं की आवाजे,
कहा गोरियो का ठहठहाना,
कहां छोरो को, छेड़जाना।

कहां गुम है, मेंहदी के हाथ,
वक़्त कहा है, थामे जो हाथ,
कहां गई, वो चांदनी रात,
बैठे थे हम, झुलो में साथ।

कहां है वो, मेलो की रंगत,
कहां है वो, संखियो की पंगत,
कहा है वो, यारो की टोली,
कहां है राधा कृष्ण की ठिठोली।

चलो, फिर से वो, झूले लगाए,
बारिश की रिमझिम, में नाचें गाए,
प्यार को अपने, प्यार जताएं,
हर्शो उल्लास से, सावन मनाएं।।

देव

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