चौखट से निकाल कदम,
उसने आज बड़ा ही दिया,
हदों का अपनी, दायरा,
पल में आज समाप्त किया।
कहने को तो खुश है,
खुशियों का अंबार है,
मगर, भरे घर में भी तन्हा,
नदारद, उसका वाला प्यार है।
चल पड़ी, बाद पड़ी,
वो निडर, अकेली सी,
ना कोई साथ, चाहिए,
ना चाहिए मोहलत कोई,
वक़्त जो भी है बचा,
उसका है, बस उसका है,
जिंदगी का हर लम्हा,
उसका है, बाद उसका है।
इश्क़ खुद से, करती है,
खुद ही से, शिकवा करती है,
खुद की महफ़िल में वो,
खुद ही शिरकत करती है।
अब नहीं, डर बचा,
अब बस यकीं है,
खुदा से दोस्ती है उसकी,
इश्क़ खुद से बेशुमार है।।
देव
16 July 2020