महफ़िल उसकी, मेहमान उसके,
वाह वाह करते, ये कद्रदान उसके।
माहौल उसका, मयखाने उसके,
होठों से छूते, वो जाम उसके।
जिसने भी कहीं, वो शायरी उसकी,
जो बज गई, वो मौशिकी उसकी।
मैं तो बस, चिराग से निकलती लौं हूं,
ये चिराग उसका, ये रोशनी उसकी।।
देव
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महफ़िल उसकी, मेहमान उसके,
वाह वाह करते, ये कद्रदान उसके।
माहौल उसका, मयखाने उसके,
होठों से छूते, वो जाम उसके।
जिसने भी कहीं, वो शायरी उसकी,
जो बज गई, वो मौशिकी उसकी।
मैं तो बस, चिराग से निकलती लौं हूं,
ये चिराग उसका, ये रोशनी उसकी।।
देव