मैं जीत कहां से पाऊंगा

मैं मुझसे जुदा हो गया तो,
मैं कहा रह पाऊंगा,
मैं, मैं कहा रह पाऊंगा,
क्षण में भ्ंगुर हो जाऊंगा।

तुम लाख कोशिशें कर लेना,
नहीं फिर मिल मैं पाऊंगा,
इक बार जो टूटी डोर, तो फिर
बंध कर मैं नहीं, रह पाऊंगा।

स्वछंद नदी सी धारा जैसी,
गति जो मैंने पाई है,
बांध बना दोगे गर इस पर,
फिर से कहां बह पाऊंगा।

मलय से शीतल पवन बना,
रखता हूं, शीतल जीवन यहां,
मलय मिटा दोगे तुम तो,
मैं वर्षा कहां से लाऊंगा।

मैं हिम कहीं, कहीं गुरु शिखर,
गोवर्धन बन कर खड़ा कहीं,
तुम शीश झुका दोगे मेरा तो,
मैं तुम्हे छिपा कहां पाऊंगा।

पौरुष्या मेरा, और निखर गया,
विपत्ति में अडिग था खड़ा रहा,
तुम डर पर विजय ना पाओगे तो,
मैं जीत कहां से पाऊंगा।।

देव

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