गलियां

तेरी गलिया
वहीं तंग सी,
घुसते ही जहा
तेरे से घर में लगी
चमेली की खुशबू से
क्या आज भी महकती है

तेरे आंगन से
चौरासी की पायजेब
की छन छन आवाजें
तेरे हर कदम पे
क्या आज भी निकलती है

तेरे आंगन में रखी
एक टेबल और
उसके आस पास
तरकीब से लगी कुर्सियां
हर आने वाली को घूरती दादी
क्या आज भी चाय पूछती है

मेरा आना तेरी गलियों में
हौले हौले तेरे होने की मालूमात
इक नज़र तेरा दीदार करना
और तेरा मुस्कुरा कर लाजाना
क्या तेरी नज़रे झुकी पलकों से
अब भी राह मेरी ताकती है

देव

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