क्या बताऊं, तुम्हे क्या समझाऊं

हाल ए दिल क्या है मेरा
क्यूं हूं परेशा पड़ के तेरी नज़रों को
क्यों यू ही, तेरी चौखट पे बैठे है
क्या बताऊं, तुम्हे क्या समझाऊं

तू, ना भी बता, पर जानता हूं मैं
किस कश्म ए कश से गुजरती है
राते तेरी
तेरा चेहरा बोलता है, सुबह बाते तेरी
मैं, सोच में पड़ जाता हूं, तेरे संजीदा चेहरे पे,
कैस हसी लाऊ, तुझे क्या समझाऊं

फर्क इतना है, बस, तू बड़े इत्मीनान से
जिंदगी को जीती है
तेरे आस पास कुछ खुशी कुछ मायूसी है
जिंदगी को जीने की अदा भी जानती है
लेकिन, कहीं किसी कोने में, अकेली है
उस तन्हाई को, कैसे तुझसे दूर ले जाऊं
तुझे क्या समझाऊं

हाल ए दिल क्या है मेरा
क्यूं हूं परेशा पड़ के तेरी नज़रों को
क्यों यू ही, तेरी चौखट पे बैठे है
क्या बताऊं, तुम्हे क्या समझाऊं

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