जिंदगी और जीने के लिए

मैं कुछ भूल गई थी यहां
उसी रात, जब सहमी सी,
लग रही थी
रुक जाऊं, या चल पडू
दिल में एक उथल पुथल थी

पर फिर एक एहसास ने
रोका मुझे
कब तक यू ही, भागती रहूंगी
जिंदगी हैं, मैं हूं,
थोड़ा आगे बडूंगी
तभी तो आगे चल सकूंगी

और बस, कुछ कदम बड़ा के
रुक गई वहीं,
जहा रहती नहीं
चिंता फिकर कोई
और, सुबह निकालने के साथ ही
छोड़ आई कुछ,
और बढ़ने ले लिए
फिर आ सकने का बहाना
जिंदगी और जीने लिए

देव

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