वो कभी कभी, कुछ परेशान नज़र आती है
मेरी आदतों से परेशां हो जाती है
मुझे खीजाने के वास्ते, कुछ ऐसा कर जाती है
अब मुझे उसकी मासूमियत पे हसीं आती है
दिन भर की भागदौड़ में भी, कई बार मुझसे टकराती है
शाम के माहौल में, मेरा दरवाजा खटखटाती है
बहाने बन जाते है, दीदार करने को
कभी चाय पीने के बहाने, बुलाती है
हर सुबह, यकीनन मेरी याद आती है
देख कर मुझको, थोड़ा लजाती है
थोड़ा शर्माती है
पर कहीं, खबर ना लग जाए,
हाल ए दिल का जहां को
अपनी हसीं से जज्बात छुपाती है
देव