और ना कोई समझ पाया

हर रूह की अपनी है कहानी
कुछ सुनाई, कुछ महसूस करी
यारो के जब आंखो में था पानी

दर्द मेरा बहुत कम नजर आया
उसके किस्से में,
सैलाब उबलता पाया
सब्र दिया उसे,
जानता हूं बड़ा आसां था बोलना
फुट पड़ा मैं भी,
जब उसने चेहरा घुमाया

कर्ज, माथे पे, लिए दर्द का,
फिरते है वो क्यूं
कुछ पल, जब उसे जिया,
तो समझ पाया

स्याह राते गुजरना,
ना होना किसी का, पर होना
खो देना और महसूस करना,
करीब हर वक़्त
कैसे गुजरती होगी घड़ियां,
बस वो जानती है
और ना कोई समझ पाया

देव

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