पल्लू

गिरते हुए से पल्लू को
अंदाज़ से उठते हुए
कतल कर दे, नजरो से
देखती है झुकी पलके, उठाते हुए

यू ही नहीं, लगती है
कतारे कुंवारों की राहों में
कुछ तो अदा बेखेरी है
तेरी जुल्फों ने लहराते हुए

आज भी तकते है हम
तेरे माथे पे लगी, काली बिंदी
गिर जाते है आज भी गश ख़ाके
जब चलती हो तुम, बलखाते हुए

देव

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